सुमिरणं ध्यान गुरु की सेवा,और गुरु का दर्शन
सुमिरणं ध्यान गुरु की सेवा,और गुरु का दर्शन,,
सत्संग आरती-पूजा,पाँच रत्न भक्ति धन,,
सुमिरणं ध्यान गुरु की सेवा,और गुरु का दर्शन,,
सत्संग आरती-पूजा,पाँच रत्न भक्ति धन,,
सुमिरणं ध्यान गुरु की सेवा,,
ध्यान जुड़ें श्री चरणों में,जैसें तेल की अविरल धारा-२,
सुमिरणं करतें, मिल जाता हैं, घर बैठें ही प्रीतम प्यारा,घर बैठें ही प्रीतम प्यारा,,
सुमिरणं ध्यान गुरु की सेवा,और गुरु का दर्शन,,
सत्संग आरती-पूजा,पाँच रत्न भक्ति धन,,
सुमिरणं ध्यान गुरु की सेवा,,
जीवन कें तपतें आँगन पर,रहें झूमती छाँव गुरु की-२,
राई सीं हो,या पर्वत सीं, सेवा हो निष्काम गुरु की,सेवा हो निष्काम गुरु की,,
सुमिरणं ध्यान गुरु की सेवा,और गुरु का दर्शन,,
सत्संग आरती-पूजा,पाँच रत्न भक्ति धन,,
सुमिरणं ध्यान गुरु की सेवा,,
पाप पुन्य का नाश हैं करता,परिपूर्ण सतगुरु का दर्शन-२,
पूरणं गुरु की दाया होती,सत्पुरुष का र्निमल दर्पण,सत्पुरुष का र्निमल दर्पण,,
सुमिरणं ध्यान गुरु की सेवा,और गुरु का दर्शन,,
सत्संग आरती-पूजा,पाँच रत्न भक्ति धन,,
सुमिरणं ध्यान गुरु की सेवा,,
जीवन यात्रा खरी होती हैं,पाकर सत्संग,सन्त-समागम-२,
रोम-रोम,नस-नस में होती,अमर प्रेम की वर्षा रिमझिम,अमर प्रेम की वर्षा रिमझिम,,
सुमिरणं ध्यान गुरु की सेवा,और गुरु का दर्शन,,
सत्संग आरती-पूजा,पाँच रत्न भक्ति धन,,
सुमिरणं ध्यान गुरु की सेवा,,
माया का अंधकार मिटाती, दोनों समय की आरती-पूजा-२,
जगमग ज्योति, प्रगट हैं होती,जब खुलता हैं द्वार हृदय का,जब खुलता हैं द्वार हृदय का,,
सुमिरणं ध्यान गुरु की सेवा,और गुरु का दर्शन,,
सत्संग आरती-पूजा,पाँच रत्न भक्ति धन,,
सुमिरणं ध्यान गुरु की सेवा,,
पाँच रत्न सें, वें हैं जिसनें, सोजी पड़ी उसें, निजी घर की-२,
पूरणं भाग्य, जगें मस्तक कें,जोतं सें जोतं रल्ली,उस नर की,जोतं सें जोतं रल्ली,उस नर की,,
सुमिरणं ध्यान गुरु की सेवा,और गुरु का दर्शन,,
सत्संग आरती-पूजा,पाँच रत्न भक्ति धन,,
सुमिरणं ध्यान गुरु की सेवा,,
बोलो जयकारा
बोल मेरे श्री गुरुमहाराज जी की जय
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