कितने ऊँचें भाग हमारे, हमनें सतगुरु पाया हैं Kitne Unche Bhag Hamare , Humne Satguru Paya Hai
कितने ऊँचें भाग हमारे, हमनें सतगुरु पाया हैं,
जलती हुई इस दुनियाँ में,मिली ये शीतल छाया हैं, कितने ऊँचें-२,
भरे थे दुख ही दुख जिसमें,ऐसी दाँसतां सबकीं थी,
मिला ना हाथ मे,ये दर तो,परेशान ये जिन्दगानीं थी,
मिला हैं कोई मसीहा जिसनें,सारा रोग मिटाया हैं, जलती हुई-२,
कोई गुणवान या र्निगुण,सभी अपनाये जाते हैं,
गुरु-सागर दया का हैं,दया बरसातें जाते हैं,
दुनियाँ ने जिसकों ठुकराया,गुरु ने गले से लगाया हैं, जलती हुई-२,
यहाँ बेचैन रुहों को,सब्र-सन्तोष मिलता हैं,
हैं जो बेहोश जन्मों से,उन्हें भी होश मिलता हैं,
ले जायेंगे रहमत, जिसने भी यहाँ शीश झुकाया हैं, जलती हुई-२
कलम वी लिख-लिख हारीं हैं,और जुबां गा-गा कें हारीं हैं,
जमीं-आकाश,से ऊँची हाँ,गुरु-महिमा तुम्हारी हैं,
दाता तेरी रहमत से ही,दास ने ये दर पाया हैं,जलती हुई-२,
बोलो जयकारा
बोल मेरे श्री गुरुमहाराज जी की जय
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